बैठी हुती सखियन में सुंदर नवेली बाल
गुरुजन लाज तें छिपाए सब अंग को।
तहाँ आइ रसलीन देखिबे की आस पास
पास की सखीन पाए हास के प्रसंग को।
घूँघट को टारि चितवायो पिय ओर त्योंही
डीठि को उचाय लीनो यों मन अनंग को।
कुलही उतारत ज्यों पीछे ते उचक गहि
बेग ही झपटि के लपटि तकि लंग को॥27॥