Last modified on 30 जून 2016, at 23:41

नाटक:तीन / शरद कोकास

हाँ दर्द था उनकी आवाज़ में
शताब्दियों का दर्द
भरत मुनि और कालिदास को याद करते हुए
कहा उन्होंने

नाटक खेलने और
मरम्मत की दुकान खोलने में
अब कोई फ़र्क नहीं रहा
हर कोई नया कलाकार
दो चार नाटक खेलकर
बन जाता है निर्देशक
बना लेता है अपनी टोली

उतारता है
नये पट्ठों को अखाड़े में
सिखाता है अपने सीखे हुए सबक
करता है जोड़-तोड़ जीतने के लिए स्पर्धा में
बैठता है समीकरण पुरस्कारों के लिए
फिर वह
नाटक कतई नहीं खेलता
कहा उन्होंने।

-1993