नामविश्वास-8 
(79) 
जाहिर जहानमें जमानो ऐक भाँति भयो,
 बेंचिए बिबुधधेनु रासभी बेसाहिए
ऐसेऊ कराल किलकाल में कृपाल! तेरे, 
नाम के प्रताप न त्रिताप तन दाहिए। 
तुलसी तिहारो मन-बचन -करम, तेंहि , 
नातें  नेह-नेमु निज ओरतें निबाहिए। 
रंकके नेवाज रघुराज! राजा राजनिके, 
उमरि दराज महाराज तेरी चाहिए।।
(80)
स्वारथ सयानप, प्रपंचु परमारथ, 
कहायो राम! रावरो हौं ,जानत जहान है। 
नामकें  प्रताप बाप! आजु लौं  निबाही नीकें, 
आगेको गोसाईं ! स्वामी सबल सुजान है।। 
कलिकी कुचालि देखि दिन-दिन-दूनी , 
देव! पाहरूई चोर हेरि हिए हहरान है।
 तुलसीकी , बालि ,बार -बारहीं सँभार कीबी, 
जद्यपि कृपानिधानु सदा सावधान है।।