1.
देखो रसलीन आइ कौतुक सुभेख नेकु,
जाकी छबि मेरे दृग माँहि अब यों फिरै।
ऐसी जामिनी मैं एक भामिनि सुहावनी सी,
सोवत है चाँदनी में मंदिर कै बाहिरै।
दूपटा नवीन सेत डारें पग ते गरे लौं,
ताकी उपमान आन मन में यही थिरै।
मानो छीर सागर की तनुजा उजागर सी,
आन छीर सागर के बीच उलटी तिरै॥36॥
2.
पौथ्ढ़ परजंक पर सोवति मयंकमुखी,
बाम पांय को पसारि दच्छन सिकोरि के।
त्यों ही रसलीन एक हाथ हिय तरें धरे,
दूजी हाथ सीस ढकि राखे मुख मोरि के।
डालो नैन छोर सिर ऊपर बिराजे जोर,
आँचर को ओर उर रह्यो छबि छोरि के।
नैन तै निरखि यह सैन भाव भाँवती को
मैन बरजोर चित चैन लीन्हों चोरि के॥37॥