(राग भैरव-तीन ताल)
नित्य सच्चिदानन्द सदाशिव भालचन्द्र शुचि सौय सुरूप।
सर्प-रत्न-मणि कुञ्सुम माल मण्डित गल, पिन्गल जटा अनूप॥
नेत्रत्रय, त्रिपुण्ड शोभित, कटि भुजग, हरण मन्मथ मद-गर्व।
ऋञ्क्ष-चर्म-परिधान ध्यानमय वन-तरु तले सुशोभित शर्व॥
(राग भैरव-तीन ताल)
नित्य सच्चिदानन्द सदाशिव भालचन्द्र शुचि सौय सुरूप।
सर्प-रत्न-मणि कुञ्सुम माल मण्डित गल, पिन्गल जटा अनूप॥
नेत्रत्रय, त्रिपुण्ड शोभित, कटि भुजग, हरण मन्मथ मद-गर्व।
ऋञ्क्ष-चर्म-परिधान ध्यानमय वन-तरु तले सुशोभित शर्व॥