निर्जन यमुना-तट से
कोई तुझे पुकार रहा है, राधे! वंशीवट से
कब तक और करेगी अवहेला इस मोहक ध्वनि की!
देख, डूबती जाती है जल में छाया दिनमणि की
संध्या घेर रही है नभ को अपने श्यामल पट से
कितनी चली गयीं सखियाँ, कितनी पीछे आयेंगी
सब कदम्ब के तले रास में तुझसे मिल जायेंगी
लिपटी कौन रहेगी घर में अपने मृण्मय घट से!
निर्जन यमुना-तट से
कोई तुझे पुकार रहा है, राधे! वंशीवट से