(15)
नृपति-कुँवर राजत मग जात |
सुन्दर बदन, सरोरुह-लोचन, मरकत कनकबरन मृदु गात ||
अंसनि चाप, तून कटि मुनि पट, जटामुकुट बिच नूतन पात |
फेरत पानि सरोजनि सायक, चोरत चितहि सहज मुसुकात ||
सङ्ग नारि सुकुमारि सुभग सुठि, राजति बिन भूषन नव-सात |
सुखमा निरखि ग्राम-बनितनिके नलिन-नयन बिकसित मनो प्रात ||
अंग-अंग अगनित अनङ्ग-छबि, उपमा कहत सुकबि सकुचात |
सियसमेत नित तुलसिदास चित, बसत किसोर पथिक दोउ भ्रात ||