न-कुछ-जीवी व्यक्ति / केदारनाथ अग्रवाल

न-कुछ-जीवी व्यक्ति
कुछ-जीवी व्यक्तियों से
कटा-कटा,
निजत्व में टिका,
अस्तित्व की
अजनबी रेखाएँ
खींचते-खींचते,
कभी वृत्त-
कभी त्रिकोण-
कभी बिन्दु-
कभी शून्य के परिवेश का
ज्यामितिक जीवन भोगता है;
न आदमी बनता है-
न आदमी लगता है-
न द्वन्द्व करता है-
न कर्म करता है-
निजत्व में
लुका-छिपा
रहता है।

रचनाकाल: ११-१२-१९७८

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.