न आता इधर तो
कैसे एख पाता
दूर-दूर तक फैली हरी-भरी धरती
और गायें दूब चरतीं
न आता इधर तो
कैसे जुड़ाते ये नयन
कैसे नहाता
दूध से मन !
न आता इधर तो
कैसे एख पाता
दूर-दूर तक फैली हरी-भरी धरती
और गायें दूब चरतीं
न आता इधर तो
कैसे जुड़ाते ये नयन
कैसे नहाता
दूध से मन !