न बोलने पर भी,
मैं सुनता हूँ तुम्हारे बोल
तुम्हारी बोलती-आँखों से
जो मुझे
प्यार से पुकारतीं-
और मौन ही
निहारती हैं
हर हमेश,
धूप हो या छाँव-
कड़के बादल-
चमके बिजली-
तड़पें प्राण।
रचनाकाल: २९-०६-१९७९
न बोलने पर भी,
मैं सुनता हूँ तुम्हारे बोल
तुम्हारी बोलती-आँखों से
जो मुझे
प्यार से पुकारतीं-
और मौन ही
निहारती हैं
हर हमेश,
धूप हो या छाँव-
कड़के बादल-
चमके बिजली-
तड़पें प्राण।
रचनाकाल: २९-०६-१९७९