ऊपर
आसमान में
ऊँचे
और ऊँचे
उड़ाने को बेताब हैं
पतंगे
नीचे धरती पर
पीछे
और पीछे
खिंच रहे हैं
माँझे
फड़फड़ाकर
आ ही गिरेंगी
देर-सवेर
धरती पर
तमाम पतंगे
आसमान की
खुद में चुपचाप
सिमट जाएगे मांझे
कतई बेअसर.....
बिलकुल अंजान......
एकदम खामोश
एक बार फिर से
छुप जाएँगे सारे अपराध
खामोशियों में!