मौन स्वरों में पत्थर बोला,
मानव, तू सुन भी पाया क्या !
’वह यदि तुझसे प्रीत निभाता;
तू जीवन को सफल बताता
तूने भला किया, कब, किसका —
और निबाहा किससे नाता !
स्वर्ग धरा पर मांँग रहा है,
पर देने को तू लाया क्या ?’
मौन स्वरों में पत्थर बोला,
मानव, तू सुन भी पाया क्या !!
’वह कल था, इतना क्या कम है,
आज नहीं है तो क्या दुख है,
याद दिलाने को दीवारें हैं,
इतना क्या थोड़ा सुख है !
झरें वृक्ष के मीठे फल यदि,
मधुर नहीं तरु की छाया क्या ?’
मौन स्वरों में पत्थर बोला,
मानव, तू सुन भी पाया क्या !!
मैंने समझ देव पत्थर में,
पत्थर पूजा, शीष झुकाया,
कलि मुरझाई, गई चढ़ाई,
दीप बुझा जो गया जलाया,
प्रथम उसी दिन पत्थर बोला —
’क्यों तेरा मन भर आया क्या !’
मौन स्वरों में पत्थर बोला,
मानव, तू सुन भी पाया क्या !!