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पद 57 से 70 तक/पृष्ठ 3

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भूरिभाग-भाजनु भई |
रुपरासि अवलोकि बन्धु दोउ प्रेम-सुरङ्ग रई ||

कहा कहैं, केहि भाँति सराहैं, नहि करतूति नई |
बिनु कारन करुनाकर रघुबर केहि-केहि गति न दई ||

करि बहु बिनय, राखि उर मूरति मङ्गल-मोदिमई |
तुलसी ह्वै बिसोक पति-लोकहि प्रभुगुन गनत गई ||