पहले आले घी मक्खन, दूध-दही और सीत बदलगे
झूठी कसम ईमान उठाले, दया, धर्म और नीत बदलगे
पशु और पखेरू बंदा, लेवड़ा और भीत बदलगे
आगै आगै बढ़ते जा सैं, दरवाजे और पछीत बदलगे
भूण्डी सुणकै प्रसन्न हो सै, आच्छी बातचीत बदलगे
धनपत, ब्यास, सुरैया, नर्गिस, धार्मिक गीत बदलगे
कह ‘दयाचन्द’ इस भारत के कवियों का भी ज्ञान बदल ग्या...