चंचला चोखी कृपान बनी,
अवली बगुलान की सैन रही जुर।
सारँग सारँग है सुर नायक,
जय धुनि दादुर मोरन को सुर॥
वे घन प्रेम पगीं विरहीन पैं,
व्याज लिये बरसा अति आतुर।
आवत धावत वीरता वारि,
भरे बदरा ये अनंग बहादुर॥
चंचला चोखी कृपान बनी,
अवली बगुलान की सैन रही जुर।
सारँग सारँग है सुर नायक,
जय धुनि दादुर मोरन को सुर॥
वे घन प्रेम पगीं विरहीन पैं,
व्याज लिये बरसा अति आतुर।
आवत धावत वीरता वारि,
भरे बदरा ये अनंग बहादुर॥