रट दादुर चातक मोरन सोर, सुने सजनी हियरा हहरैं।
जुरि जीगन जोति जमात अरी, विरहागिन की चिनगीन झरैं॥
घनप्रेम पिया नहिं आये चलौ, भजि भीतरैं काली घटा छहरैं।
लखि मैन बहादुर बादर के, कर सों चपला असि छूटि परैं॥
रट दादुर चातक मोरन सोर, सुने सजनी हियरा हहरैं।
जुरि जीगन जोति जमात अरी, विरहागिन की चिनगीन झरैं॥
घनप्रेम पिया नहिं आये चलौ, भजि भीतरैं काली घटा छहरैं।
लखि मैन बहादुर बादर के, कर सों चपला असि छूटि परैं॥