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पावस - 6 / प्रेमघन

खिलि मालती बेलि प्रफुल्ल कदम्बन,
पैं लपटी लहरान लगी।
सनकै पुरवाई सुगन्ध सनी,
बक औलि अकास उड़ान लगी॥
पिक चातक दादुर मोरन की,
कल बोल महान सुहान लगी।
घन प्रेम पसारत सी मन मैं,
घनघोर घटा घहरान लगी॥