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पावस - 8 / प्रेमघन

नभ घूमि रही घनघोर घटा,
चहुँ ओरन सों चपला चमकान।
चलै सुभ सावन सीरी समीर,
सुजीगन के गन को दरसान॥
चमू चँहकारत चातक चारु,
कलाप कलापी लगे कहरान।
मनोभव भूपति की वर्षा मिस,
फेरत आज दोहाई जहान॥