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पावस - 9 / प्रेमघन

सजि सूहे दुकूलन झूलन झूलत,
बालम सों मिलि भामिनियाँ।
बरसावत सोरस राग मलार,
अलापत मंजु कलामिनियाँ॥
बितिहैं किहि भाँतिन सावन की,
यह कारी भयंकर जामिनियाँ।
घन प्रेम पिया नहिं आये दसौ,
दिसि तैं दमकैं दुरि दामिनियाँ॥