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पैदाइश / निदा फ़ाज़ली

बन्द कमरा
छटपटाता घुप अँधेरा
और
दीवारों से टकराता हुआ
मैं...!
मुन्तज़िर हूँ मुद्दतों से
अपनी पैदाइश के दिन का
अपनी माँ के पेट से
निकला हूँ जब से
मैं
खुद अपने पेट के अन्दर पड़ा हूँ!