Last modified on 26 दिसम्बर 2017, at 17:32

प्यार एक स्मृति है : तीन / इंदुशेखर तत्पुरुष

झिलमिल तारों को निहारते-निहारते
जैसे ओझल हो जाए चन्द्रमा तीज का
कि पता भी न चले कब उगा और
हो गया अस्त;
ऐसा ही होता था नई-नई
बातों की फुलझड़ियों की ओट में
जब हम भूल जाते थे अक्सर
कॉफी का प्याला कॉफी हाउस की मेज पर।
जिसकी गर्म भाप सी उसांसें हो जाती शांत
धीरे-धीरे
और जम गई होती पपड़ी मटमैली चादर-सी।
बतरस और बहकती बहसों के बीच
ठंडी हुई कॉफी का पथराया कसैलापन
अभी तक तिर रहा है मेरी जीभ पर।

यह किस गवाक्ष से उतरता आता है
मेरे वक्ष में आश्रय ढूंढता
तुम्हारे उच्छवासों का वात्याचक्र
तुम्हारी अनुपस्थितियों के बीच
सनातन उपस्थिति की तरह।