मेरी मरजी से कुछ न दिया
ज़िन्दगी ने मुझे जो दिया अपनी मरजी से दिया
जब देते ही छीन लेना था
तो ए ज़िन्दगी तूने खामख्वाह मुझे प्यार क्यों दिया
जो बीत गया उसे भूल जा
कोई और कहता तो और बात थी तुमने कह दिया
उसके दिखने तक का ही रोना है
दिखते ही भूल जाती हूँ दिन भर का सब लिया-दिया
प्यार शब्द जहाँ आता है वहाँ
क्यों चला जाता है खामोश जलता हुआ एक दिया
प्यार में नहीं रखा जाता है हिसाब
कि कब किसने कितना लिया कितना दिया