कुछ कठिनाई की कहौ तो कौन समता है,
करद कटाछन की काट किहि तौर है।
मृदु मुसुक्यानि की मजा औ माधुरी अधर,
पिय को सजोग सुख और किहि ठौर है॥
प्रेमघनहूँ को त्यों पियूष वर्षा विनोद,
अनुभव रसिक बिचारैं करि गौर है।
रहनि सहनि सुमुखीन की सुजैसैं और,
वैसैं सुकवीन की कहनि कछु और है॥