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प्रार्थना - 5 / प्रेमघन

वारौं अंग अंग छवि ऊपर अनंग कोटि,
अलकन पर काली अवली मलिन्द की।
वारौं लाख चन्द वा अमन्द मुख सुखमा पै,
वारौं चाल पै मराल गति हूँ गइन्द की॥
वारौं प्रेमघन तन धन गृह काज साज,
सकल समाज लाज गुरुजन वृन्द की।
वारौं कहा और नहि जानौ वीर वापै अब,
बसी मन मेरे बाँकी मूरति गोविन्द की॥