टेढ़ौ मोर मुकुट कलंगी सिर टेढ़ी राजैं,
कुटिल अलक मानो अवली मलिन्द की।
लीन्हें कर लकुट कुटिल करै टेढ़ी बातैं,
चलै चाल टेढ़ी मद मातेई गइन्द की॥
प्रेमघन भौंह बंक तकनि तिरीछी जाकी,
मन्द करि डारै सबै उपमा कविन्द की।
टेढ़ो सब जगत जनात जबहीं सो आनि,
बसी मन मेरे बाँकी मूरति गोविन्द की॥