खंजर? आग?
धीरे से।
इतनी ज़ोर से बोलने की क्या ज़रूरत!
चिर-परिचित यह दर्द
जैसे आँखों के लिए हथेली,
जैसे होंठों के लिए
अपने बच्चे का नाम।
रचनाकाल : 1 दिसम्बर 1924
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
खंजर? आग?
धीरे से।
इतनी ज़ोर से बोलने की क्या ज़रूरत!
चिर-परिचित यह दर्द
जैसे आँखों के लिए हथेली,
जैसे होंठों के लिए
अपने बच्चे का नाम।
रचनाकाल : 1 दिसम्बर 1924
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह