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प्रेम समुद्र रुप रस गहिरे / हरिदास

प्रेमसमुद्र रुपरस गहिरे, कैसे लागै घाट।
बेकार्‌यो दै जानि कहावत जानि पनोकी कहा परी बाट॥

काहूको सर परै न सूधो, मारत गाल गली गली हाट।
कहि हरिदास बिरारिहि जानौ, तकौ न औघट घाट॥