प्रेमसमुद्र रुपरस गहिरे, कैसे लागै घाट।
बेकार्यो दै जानि कहावत जानि पनोकी कहा परी बाट॥
काहूको सर परै न सूधो, मारत गाल गली गली हाट।
कहि हरिदास बिरारिहि जानौ, तकौ न औघट घाट॥
प्रेमसमुद्र रुपरस गहिरे, कैसे लागै घाट।
बेकार्यो दै जानि कहावत जानि पनोकी कहा परी बाट॥
काहूको सर परै न सूधो, मारत गाल गली गली हाट।
कहि हरिदास बिरारिहि जानौ, तकौ न औघट घाट॥