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फिर से आ जाओ / कांतिमोहन 'सोज़'

एक बार फिर से आ जाओ !
मेरे मन के सुन्न महल में
हँसकर कोई जोत जलाओ I

जहाँ प्रीत की धूप खिली थी
आज वहाँ गहरी छाया है
ओ सुख-वारिद तूने मुझको
बून्द-बून्द को तरसाया है ।
कब की प्यासी है ये धरती
प्रेम-सुधा अब तो बरसाओ ।

एक बार फिर से आ जाओ !
मेरे मन के सुन्न महल में
हँसकर कोई जोत जलाओ ।।

जहाँ मचलती थी हरियाली
वहाँ बरजती धूल जमी है
ओ मायावी तुम क्या रूठे
अब हर कण मैं एक कमी है ।
बड़ी अभागी है ये धरती
हँसकर इसको गले लगाओ ।

एक बार फिर से आ जाओ !
मेरे मन के सुन्न महल में
हँसकर कोई जोत जलाओ ।
एक बार फिर से आ जाओ ।।