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बसंत-ऋतु समीर बरनन / रसलीन

बासर मैं छार छार छार को बहार डार,
धार धर ल्याइ बार धरा छिरकाई है।
रजनी निहार सब कन कन घन टार,
चंद को निकार आन चाँदनी बिछाई है।
सुमन सुगंध सार आछी भाँति हूँ सँचार,
ताहि कों बिचार रसलीन अब आई है।
करै मुनहार सी बयार चेरी बार बार,
आज की बहार में बहार सुखदाई है॥71॥