संवेदनाएँ
हृदय से ही नहीं
समूचे अस्तित्व से करती हैं विद्रोह
झिंझोड़ देती हैं कसकर
भीतर बह रहे मौन उन्माद के दरिया को
पृथ्वी के माथे पर
नहीं पड़ती शिकन
समुद्र मेम कहीं नहीं आते चक्रवात
क्रन्दन नहीं करती लहरें
शिखर पर नहीं पिघलती बर्फ़
विस्मृत नहीं होतीं ख़्वाहिशें
यह कैसा बहाव है जो
अपने संग समय / परिवेश / हृदय
स्वत्व सभी को बहा ले जाता है ।