मुट्ठी भर बाँध कर इरादे
बाँहों भर तोड़ कर क़सम
गीतों के रेशमी नियम जैसे—
वैसे ही टूट गए हम
यह जीवन
धूप का कथानक था
रातों का चुटकला न था
पर्वत का
मंगलाचरण था यह
पानी का बुलबुला न था
आँगन का आयतन बढ़ाने
बढ़ने दो-चार सौ क़दम
हमने दीवार की तरह तोड़ी
परदों की साँवली शरम
मुट्ठी भर बाँध कर इरादे