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बातें तो बातें हैं / रामकुमार कृषक

बातें तो बातें हैं
बात क्या करें
भूतों से भिड़ने को लातें ही ठीक ?

आख़िर क्यों
पोषते रहें
बेमानी आशाएँ
मानवी बता
कुण्ठित–से ऐंठते रहें
अपने ही भीतर का आदमी सता,

बातें तो बातें हैं
बात क्या करें
घातों के बदले में घातें ही ठीक ?

गर्दन पर
ओटते रहें
नाकारा नारों का
कब तलक जुआ
सहते ही जाएँ क्यों
चाँटे ही चाँटे हम
गॉंधी का देश क्या हुआ,

बातें तो बातें हैं
बात क्या करें
चोटों के बदले में चोटें ही ठीक ?

07 फ़रवरी 1974