बाब-ए-रहमत के मीनारे की तरफ़ देखते हैं
देर से एक ही तारे की तरफ़ देखते हैं
जिससे रौशन है जहाँ-ए-दिल-ओ-जान-ए-महताब
सब उसी नूर के धारे की तरफ़ देखते हैं
रुख़ से पर्दा जो उठे वस्ल की सूर्स्त बन जाये
सब तेरे हिज्र के मारे की तरफ़ देखते हैं
मोजज़न इक समन्दर है बला का जिसमें
डूबने वाले किनारे की तरफ़ देखते हैं
आने वाले तेरे आने में हैं क्या देर कि लोग
कस-ओ- नाकस के सहारे की तरफ़ देखते हैं