गंगा के बाढ़ आ तिलक के बाढ़, दुनू मे बहुत अन्तर छै
गंगा के हृदय पिघलै छै, मगर तिलक के दिल सांचे पत्थर छै
गंगा के दस बरिस के बाढ़ मे तेॅ हम्मर दू टा फसिल दहायल छल
दहयलो के बाद मगर हर साल घ’र मे कुछ न कुछ फसिल आयल छल
मगर तिलक के एगो बाढ़ मे हमर दसो बरिस के फसिल दहाय गेल
नाक भरि पानी हमरा नै नहा सकल, दू बुन्न बेटी के लोर मे पुरखा नहाय गेल
लोग सच कहै छै कि धन-शोक सें पुत-शोक बहुत बेहतर छै
गंगा के बाढ़ तेॅ केवल फसिल खाइ छै, तिलक के बाढ़ तेॅ खेत समेत खाय गेल
गंगा के निगलल खेत पर बहत आस छल, तिलक के बाढ़ तेॅ संपूर्ण देश खाय गेल
गंगा के बाढ़ मे माटी छै, माटी रेत खेत मे टिक जाइ छै
तिलक के बाढ़ जे खेत, जे देश में टिकै छै, ऊ खेत, ऊ देश बिक जाइ छै
गरीबी के उतरल बिक्ख चढ़ि जाइ छै सिर पर, तिलकके बाढ़ एहन मंतर छै
बाबूसाहेब के छोड़ के बताब’, कि तिलक के बाढ़ सें के नै तबाह छै
गंगा के बाढ़ मे तऽ थाह मिल जाइ छै, तिलक के बाढ़ तऽ अथाह छै
गंगा के बाढ़ देश के लेल वरदान, तिलक के बाढ़ अभिशाप छै
की गुजरै छै बेटी के बियाह मे, पूछो ओकरा जे गरीब बाप छै
बेटा के बाप लगाबै छै मोछ मे घी, बेटी बाप के देह पर नै बस्तर छै