चाय का वक़्त है यह
यह नाश्ते का
यह दोपहर के खाने का वक़्त है
रात के खाने का वक़्त है यह....
अपने कमरे में बैठी होगी संज्ञा
अपनी दुनिया में खोई
अपनी किताबों के साथ
सोचती हुई अपने बारे में....
मेरे बारे में सोचती हुई
सोचती हुई उस हर आदमी के बारे में
उसके बारे में सोचता है जो।
रचनाकाल : 1992, विदिशा