भर्त्सनाओं से मुक्त,
ओ विनम्र प्रेतात्मा
किसने आमंत्रण दिया तुम्हें
मेरे युवा जीवन में आने का?
फ़ाख़्ताई रंग के अंधेरे में
खड़ा बर्फ़ीला चोगा पहने-
न जाने यह हवा है या कुछ और
जो हाँक ले जाता है मुझे शहर की गलियों में ।
उफ़्फ़ आज तीसरी रात
सुन रही हूँ दुश्मन की आहट ।
मन्त्रबिद्ध कर रखा है मुझे
नीली आँखों वाले
इस हिम-गायक ने।
बर्फ़ के हंस ने
बिछा रखे हैं पंख
मेरे पाँवों के नीचे
गहरे और गहरे
धँसते जा रहे हैं वे बर्फ़ में ।
इस तरह इन पंखों की दिशा में
मैं जा रही हूँ उस द्वार की ओर
जिसके पीछे चुप बैठी है मौत।
वह गा रहा है मेरे लिए
नीली खिड़कियों के पीछे से ।
दूर कहीं गूँजती खंजड़ी की तरह
वह गा रहा है मेरे लिए,
बुला रहा है
हंस की चहक और
लम्बी किलकारी से।
ओ, प्रिय प्रेतात्मा
जानती हूँ, यह मात्र सपना है।
फिर भी, तू कुछ तो बोल
आमीन !
रचनाकाल : 1 मई 1916
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह