Last modified on 29 नवम्बर 2008, at 23:21

ब्लोक के लिए-5 / मरीना स्विताएवा

कलश जल रहे हैं मेरे यहाँ मास्को में
घंटियाँ बज रही हैं मेरे यहाँ मास्को में
पंक्तिबद्ध कब्रों में
सो रहे हैं सम्राज्ञी और सम्राट ।

तुम्हें नहीं मालूम कि दुनिया में कहीं भी
इतनी निर्बाध साँस नहीं ली जा सकती जितनी कि क्रेमलिन में ।
तुम्हें नहीं मालूम कि क्रेमलिन में सुबह से शाम तक
प्रार्थना करती हूँ मैं तुम्हारे नाम की ।

और तुम टहल रहे होते हो निवा पर
तब जब मस्कवा नदी के ऊपर
मैं खड़ी होती हूँ सिर झुकाए
जब सिमट जाते हैं सब चिराग ।

इस अनिद्रा से प्रेम करती हूँ मैं तुम्हें,
तब जब पूरे क्रेमलिन में
जाग रहे होते हैं सब चिराग ।

लेकिन मेरी नदी मिल नहीं पाएगी तुम्हरी नदी से,
मिल नहीं पाएगा मेरा हाथ तुम्हारे हाथ से

ओ मेरी ख़ुशियों के स्रोत
मिल नहीं पाएंगे वे
मिल नहीं पाएंगी जब तक झिलमिलाहटें
साँझ और सुबह की ।

रचनाकाल : 7 मई 1916

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह