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मंगलाचरण - 2 / प्रेमघन

दोउन के मुख चन्द चितै, अँखिया दुनहून की होत चकोरी।
दोऊ दुहूँ के दया के उपासी, दुहूँन की दोऊ करैं चित चोरी॥
यों घन प्रेम दोऊ घन प्रेम, भरे बरसैं रस रीति अथोरी।
मों मन मन्दिर मैं बिहरैं, घनस्याम लिए बृषभान किशोरी॥