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मंजिल पर आकर लौट गए / मृदुला झा

वे कसमें खाकर लौट गए।

आये तो थे वो चाह लिए,
पर इश्क़ भुलाकर लौट गए।

कुछ बात छिड़ी लेकिन मेरा,
बोझिल मन पाकर लौट गए।

वादा तो था संग चलने का,
क्यों हाथ छुड़ा कर लौट गए।

हम खाने को आये थे क्या,
पर धोखा खाकर लौट गए।

जाने मुझसे क्या भूल हुई,
वे हाथ मिला कर लौट गए।

सब कसमें वादे झूठे थे,
इक बाग दिखाकर लौट गये।