मगहर से इक उड़ी टिटिहरी
लाँधे सात समुन्दर
टिलों-टिलों ललकार रही है
जागो गुरू मछन्दर
सबके मन में एक मछन्दर
रहता ज्ञानी-ध्यानी
गाफ़िल अंधकार में सोया
है यह कथा पुरानी
जल में थल में अलख जगाती
उड़ती रही टिटिहरी
कुछ जागे कुछ फिर भी सोये
रहे नींद थी गहरी
लाभ लोभ की नींद भयानक
ऐसा सपना आया
सोने वाले शिला बन गये
कोई बचा न पाया
सात समुन्दर उड़ी टिटिहरी
जागा समय सनातन
कच्छ-मच्छ सागर में हुलसे
पानी हुआ मगन मन
मगहर से इक उड़ी टिटिहरी
जोजन पंख पसारे
तीन भुवन में बजे नगाड़ा-
नौबत साँझ-सकारे
नील गगन में जाग उठे
फिर सूरज-चाँद-सितारे
गाँव-गाँव को चले जगाने
छूट पड़े हरकारे
उसी गाँव का लड़का
पढ़ कर लौटा बन हरकारा
पता सत्य का खोज रहा है
फिरता मारा-मारा
जीवन की खुरदरी पर्त
के नीचे उसने देखा
दमक रहा था सत्य
खिंच रही थी विचार की रेखा
मगहर से इक उड़ी टिटिहरी
उड़ती सात अकासा
हहर-हहर जब पंख डुलावै
चलै पवन उन्चासा
सरग लोक में आँधी आई
पहुँची वहाँ टिटिहरी
भाग चले सब डण्ड-कमण्डल
एक न मूरत ठहरी
मगहर से इक उड़ी टिटिहरी
चुगती जाय अँगारा
उठे भभूका चलती लू का
दहक रहा संसारा
पानी से ये आग बुझे ना
आग बुझाय पसीना
हँस-हँस कर जो चले आग पर
मरना उसका-जीना
उड़ती-उड़ती चली टिटिहरी
आँगन ऊपर आई
झार बुहार रही थी माई
उसे देख मुस्काई
माई बोली सुनो टिटिहरी
तुम भी तिरिया-जात
घर में बंद हमजनी की
भी करती रहना बात
दुःख हमारा सुन कर शायद
जागे धरती माता
खुली हवा का थोड़ा-सा सुख
हमको भी मिल जाता
दुनिया भर के अंधकार के
ऊपर उड़ी टिटिहरी
भरती जाती थी धरती पर
धवल चाँदनी गहरी
खेल-कूद की बात एक दिन
उसके मन में आई
उड़ी टिटिहरी उड़ कर
बच्चों के मन में घुस आई
हुई बहुत हैरान
समझ में बात नहीं कुछ आई
जब बच्चों के मन में चिन्ता
और उदासी पाई
बच्चों के मन में सवाल थे
चाकू जैसे पैने
तुरत फुर्र से उड़ी टिटिहरी
अब घायल थे डैने
प्रश्नों के उत्तर तलाशती
उड़ती रही टिटिहरी
गगन-गुफा सा अंतरिक्ष था
औ’ उड़ान थी गहरी
उड़ते-उड़ते आसमान पर
कुछ लिखती जाती थी
उसी लिखावट में वह चिड़िया
खुद घुलती जाती थी
महाकाश में भँवर डालती
उड़ती रही सयानी
और सृष्टि के महासिन्धु में
बन कर बुन्द समानी