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मधु है मधुबन है / रामगोपाल 'रुद्र'

मधु है, मधुबन है, मधुमाते दृग भी फूले, तो अचरज क्या!

पतझर के पात सिहाते हैं,
'क्या मौसम है!' झुँझलाते हैं;
तरु-तरु तरुणाई झूल रही, मन भी झूले तो अचरज क्या!

बुलबुल का दिल जब छिलता है,
गुलशन में गुल तब खिलता है;
यदि दर्द तुम्हारे गीतों का दिल भी छू ले, तो अचरज क्या!

भौरों को कोई रोके तो!
पुरवा को कोई टोके तो!
तितली बन स्वप्न तुम्हारे भी भरमे-भूले, तो अचरज क्या!