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महाकुम्भ-मेला / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग ।
नासिक के जागे हैं भाग ।।

बहुत बड़ा यहाँ लगता मेला ।
लोगों का आता है रेला ।।

सुर-सरिता के पावन तट पर ।
सभी लगाते डुबकी जी भर ।।

बारह वर्ष बाद जो आता ।
महाकुम्भ है वो कहलाता ।।

भक्त बहुत इसमें जाते हैं ।
साधू-सन्यासी आते हैं ।।

जन-मन को हर्षाने वाला ।
श्रद्धा का यह पर्व निराला ।।