अक्सर गाती थीं
माँ और उसकी साथिनें
अलस्सुबह उठ कर
आटा पीसते
कार्तिक स्नान को जाते
घर को लीपते-बुहारते
अक्सर गाती थीं
माँ और उसकी साथिनें
तीज-त्योहार
शाही-ब्याह पर
या फिर बेवजह
खू़ब-खू़ब गाती थीं
माँ और उसकी साथिनें
यह खु़द को अतीत में
धकेलने की कोशिश नहीं
सवाल है छोटा सा
कि अब
क्यों नहीं गातीं
माँ और उसकी साथिनें?