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माँ बेटी दोपहरी / देवेन्द्र कुमार

माँ-बेटी
दोपहरी
पाट छोड़कर बहती
पहाड़ी नदी गहरी

चील उड़ी तालों से
वह देखो !
आसमान भर गया
सवालों से

काँच की ख़िड़कियों पर
जैसे इच्छा ठहरी

कहने को खेत मिला
घर छूटा
आँचल में
नदियों को रेत मिला
सागर का नाम बड़ा
आँखों देखी कह री !

माँ-बेटी
दोपहरी
पाट छोड़कर बहती
पहाड़ी नदी गहरी