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मालूम है तारीकी-ए-शब कम नहीं होगी / 'महताब' हैदर नक़वी

मालूम है तारीकी-ए-शब कम नहीं होगी
सो आँख हमारी भी कभी नम नहीं होगी

जब उसने जलाई है ,तो ये शमा जली है
अब रोशनी इसकी कभी मद्धम नहीं होगी

फिर वस्ल के असबाब भी बनते ही रहेंगे
फिर हिज्र की मुद्दत भी मगर कम नहीं होगी

जब याद रहेगा किसी दीवार का साया
सो धूप की शिद्दत भी कभी कम नहीं होगी

क्या देखता रहता है, इन आँखों में कि अब के
बरसात कोई दम, मेरे हमदम नहीं होगी