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मुक्ति की कामना / इंदुशेखर तत्पुरुष

कितनी जगहों पर
कितनी यात्राएं कर चुका अब तक
कहां रहा याद !

हर नई जगह एक नया लोक
हर नया संबंध एक पुनर्जन्म की तरह
एक ही जीवन में जैसे देख लिए
अनेक जन्मान्तर।
देशान्तरों के मध्य दौड़ते-भागते
हांफने लगे हैं प्राण।

ढोते-ढोते
बाहरी छापों और खरोंचों को
निढाल हो चली आत्मा
करने लगती है मुक्ति की कामना।