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मुलायम कजली / प्रेमघन

बान्हे गले असाठा पाठा घूमः हमारी गलियाँ रामा।
अखड़ लोगे देखैं उलट तमासा रे हरी।
गोरी चिट्टी सूरत कैसी बांह मुलायम मूरत रामा।
हरे देख लख्ल्यः नितम्ब जे सब उर बतासा रे हरी।
हमैं छोड़ि कै जालिउ काहे कासी रे हरी।
होकर खासी दासी करना तौ भी यह बदमासी रामा।
पहिले भी साया कै करवाना हाँसी रे हरी॥
हम पर आप उदासी, छाई तू वाटिउ भगवासी रामा।
करि औरे सारन से लासा लासी रे हरी॥
लाज सरम सब नासी, घूमी तोहरे पीछे संगें कासी रामा।
हरे होइ गइली अब तो जानी संन्यासी रे हरी॥
छोड़ः आस अकासी भोजन मिली सदा और बासी रामा।
आखिर होबिउ जान खानगी खासी रे हरी॥
हम मिरजापुर बासी पहिराईला बुरी निकासी रामा।
खिउयाईला रोजै माल मवासी रे हरी।
बामन बाग विलासी गावै अलगी अलग लवासी भा।
हरि दवसल जालिउ केहुर करत कबासी रे हरी।