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मेरुप्रष्ठ से एक रेखा / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

मेरुप्रष्ठ से एक रेखा
नभो-बिंदु पर आ गिरती है
एक विशिष्ठ समय का अवलोकन
वो सात रंग से करती है
आँख मूंदते काली नीली
आँख खोलते सतरंगी
चुप-चाप खिंची वो विभुतल पर
नीरव-नीरस पर चंगी-मंगी
जो खिंच चुकी है अर्श पर
तो नभ मंडल से क्यूँ डरती है
मेरुप्रष्ठ से एक रेखा
नभो-बिंदु पर आ गिरती है
नील निलय पर बनी रहो
चुप-चाप वही पर तनी रहो
बच्चे गुबंद को ताक रहे हैं
शून्य समय से जो पाक रहे हैं
उनके लिए तो रुकी रहो
उनके मन की इच्छा मरती है
मेरुप्रष्ठ से एक रेखा
नभो-बिंदु पर आ गिरती है