Last modified on 12 जून 2011, at 16:22

मेाकोबिधु बदन बिलोकन दीजै।/ तुलसीदास


(12)

मोको बिधुबदन बिलोकन दीजै |

राम लषन मेरी यहैं भेण्ट, बलि, जाउ, जहाँ मोहि मिलि लीजै ||

सुनि पितु-बचन चरन गहे रघुपति, भूप अंक भरि लीन्हें |

अजहुँ अवनि बिदरत दरार मिस सो अवसर सुधि कीन्हें ||

पुनि सिर नाइ गवन कियो प्रभु, मुरछित भयो भूप न जाग्यो |

करम-चोर नृप-पथिक मारि मानो राम-रतन लै भाग्यो ||

तुलसी रबिकुल-रबि रथ चढ़ि चले तकि दिसि दखिन सुहाई |

लोग नलिन भए मलिन अवध-सर, बिरह बिषम हिम पाई ||