वो जो
फटे-पुराने जूते गाँठ रहा है
वो भी मैं हूँ |
वो जो घर-घर
धूप की चाँदी बाँट रहा है
वो भी मैं हूँ |
वो जो
उड़ते परों से अम्बर पात रहा है
वो भी मैं हूँ |
वो जो
हरी-भरी आँखों को काट रहा है
वो भी मैं हूँ |
सूरज-चाँद
निगाहें मेरी
साल-महीने राहें मेरी |
कल भी मुझमे
आज भी मुझमे
चारों ओर दिशाएँ मेरी |
अपने-अपने
आकारों में
जो भी चाहे भर ले मुझको |
जिनमे जितना समा सकूँ मैं
उतना
अपना कर ले मुझको |
हर चेहरा है मेरा चेहरा
बेचेहरा इक दर्पण हूँ मैं
मुट्ठी हूँ मैं
जीवन हूँ मैं |